वायुसेना में एयर चीफ मार्शल बनने वाले पहले भारतीय - मार्शल अर्जन सिंह


इंडियन एयर फोर्स के मार्शल अर्जन सिंह का दिल का दौरा पड़ने से शनिवार शाम निधन हो गया। 98 वर्षीय इस ऑफिसर के जुनून और प्रतिबद्धता की मिसालें उनकी मृत्यु के बाद भी दी जाती रहेंगी। उनकी मृत्यु से कुछ देर पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मिलने दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल पहुंचे थे। 
फील्ड मार्शल की तरह भारतीय वायुसेना में मार्शल ऑफ एयरफोर्सका पद बनाया गया। यह पद 2002 में वायुसेना प्रमुख अर्जन सिंह को दिया गया। भारतीय वायुसेना में यह पद अब तक सिर्फ उन्हें ही दिया गया है। वे वायुसेना में एयर चीफ मार्शल बनने वाले पहले भारतीय थे। इससे पहले तक भारतीय वायुसेनाध्यक्ष का पद था एयर मार्शल। एयर चीफ मार्शल के कंधे पर चार स्टार लगाए जाते हैं जबकि मार्शल ऑफ एयरफोस के कंधे पर पांच स्टार लगते हैं। 
आइए एक नजर डालते हैं मार्शल अर्जुन सिंह के जीवन से जुड़ी खास बातों पर:

पंजाब के लयालपुर (अब पाकिस्तान का फैसलाबाद) में 15 अप्रैल 1919 को जन्मे अर्जन सिंह औलख फील्ड मार्शल के बराबर फाइव स्टार रैंक हासिल करने वाले इंडियन एयर फोर्स के एकलौते ऑफिसर थे। इंडियन आर्मी में उनके अलावा बस 2 और ऑफिसर्स को फाइव स्टार रैंक मिली थी- फील्ड मार्शल केएम करियप्पा और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ। जून 2008 में सैम मानेकशॉ के निधन के बाद अर्जन सिंह भारतीय सेना के फाइव स्टार रैंक वाले एकमात्र जीवित ऑफिसर थे। अब उनका भी निधन हो चुका है।

19 साल की अवस्था में अर्जन सिंह ने रॉयल एयर फोर्स कॉलेज जॉइन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बर्मा में बतौर पायलट और कमांडर अद्भुत साहस का परिचय दिया। अर्जन सिंह की कोशिशों के चलते ही ब्रिटिश भारतीय सेना ने इंफाल पर कब्जा किया जिसके बाद उन्हें डीएफसी की उपाधि से नवाजा गया। 1950 में भारत के गणराज्य बनने के बाद अर्जन सिंह को ऑपरेशनल ग्रुप का कमांडर बनाया गया। यह ग्रुप भारत में सभी तरह के ऑपरेशन के लिए जिम्मेदार होता है।

पद्म विभूषण से सम्मानित एयर फोर्स मार्शल अर्जन सिंह 1 अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे। इसी दौरान 1965 की लड़ाई में अभूतपूर्व साहस के प्रदर्शन के चलते उन्हें वायु सेनाध्यक्ष के पद से पद्दोन्नत करके एयरचीफ मार्शल बनाया गया। उनके नेतृत्व में इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर कई एयरफील्ड्स तबाह कर डाले थे। एयर फोर्स प्रमुख के तौर पर लगातार 5 साल अपनी सेवाएं देने वाले अर्जन सिंह एकमात्र चीफ ऑफ एयर स्टाफ थे। 1971 में अर्जन सिंह को स्विटजरलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। इसके अलावा उन्हें वेटिकन और केन्या में भी नियुक्त किया गया था।

वह 2 साल पहले पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के पार्थिव शरीर को पालम एयरपोर्ट पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। उस वक्त कलाम को सलामी देने के लिए वह अपनी वीलचेयर से उठ खड़े हुए थे। उनकी वह तस्वीर काफी वायरल हुई थी। पिछले साल अप्रैल में उनके जन्मदिन के मौके पर पश्चिम बंगाल के पनागढ़ एयरबेस का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया गया। यह पहली बार था जब एक जीवित ऑफिसर के नाम पर किसी सैन्य प्रतिष्ठान का नाम रखा गया हो।

45 की उम्र में वायुसेना प्रमुख बनना, 15 अगस्त 1947 को सौ से भी अधिक विमानों का लाल किले के ऊपर से फ्लाई पास्ट का भी नेतृत्व करना और वायुसेना में फाइव स्टार सम्मान पाने वाले अफसर अर्जन सिंह वैसे तो अपने अनुशासन के लिए जाने जाते हैं. लेकिन एक बार उन्हें कोर्ट मार्शल तक का सामना करना पड़ा है. शनिवार को दिल्ली के एक अस्पताल में अर्जन सिंह का निधन हो गया.

हां कोर्ट मार्शल, जो उन सैनिकों को सामना करना पड़ता है जो सेना का नियम कानून तोड़ते हैं. एक ऐसा समय आया था जब वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह को वायुसेना का नियम तोड़ने पर कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा.

यह वक्त था आजादी से पहले का, जब सेना की कमान अंग्रेजों के हाथों में थी. युवा अर्जन सिंह ने फरवरी 1945 में केरल के एक घर के ऊपर बहुत नीची उड़ान भरी. इसके बाद उन्हें वायुसेना का नियम तोड़ने के आरोप का सामना करना पड़ा. उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने सिविलियन की जानों को भी जोखिम में डाला. हालांकि अर्जन सिंह ने कोर्ट मार्शल का डटकर सामना किया. उन्होंने अपने बचाव में जो बात कही, उसके बाद उनका कोर्ट मार्शल नहीं हुआ.

एक अखबार में छपी पोस्ट के मुताबिक उस समय अर्जन सिंह कन्नूर केंट एयर स्ट्रीप पर तैनात थे. उन्होंने उड़ान भरी और एयरक्राफ्ट लेकर सीधे कॉरपोरेल के घर के ऊपर पहुंच गए. उन्होंने जहाज को काफी नीचे उड़ाया. कई बार कॉरपोरेल के घर के चक्कर लगाए. ऐसे में न सिर्फ कॉरपोरेल के घरवाले सड़कों पर निकल आएं बल्कि पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. ट्रैफि‍क जाम लग गया. आपको बता दें कि उस समय हवाई जहाज देखना एक बड़ी बात होती थी और वहां के लोगों ने इससे पहले सिर्फ एक बार हवाई जहाज देखा था.

यह लोगों के लिए तो काफी मजे की बात थी, लेकिन ब्र‍िटिश प्रशासन को यह बात पसंद नहीं आई और शिकायत ऊंचे अफसरों तक पहुंची और अर्जन सिंह को कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा. हालांकि उस समय ट्रेंड पायलट की संख्या काफी कम होती थी. दूसरे विश्व युद्ध की वजह से ऐसे भी ब्र‍िटिश सेना को काबि‍ल पायलटों की जरूरत थी. ऐसे में ब्र‍िटिश सेना चाहकर भी अर्जन सिंह जैसे टैलेंटेड पायलट का कोर्ट मार्शल नहीं कर पाई.

उन्होंने कहा कि उन्होंने ट्रेनिंग पायलट का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसा किया. आपको बता दें कि कहा जाता है कि यह ट्रेनी  पायलट कोई और नहीं आगे चलकर एयर चीफ मार्शल बनने वाले एयर चीफ मार्शल दिलबाग सिंह थे. दिलबाग सिंह 1981 से 1984 तक भारतीय वायु सेना के प्रमुख थे. वे अर्जन सिंह के बाद दूसरे सिख थे जो भारतीय वायुसेनाध्यक्ष बने. दिलबाग सिंह को 1944 में एक पायलट के रूप में नियुक्त किया गया था.

आपको बता दें कि अर्जन सिंह अपनी बहादूरी और कभी हार न मानने वाले जज्बे के लिए जाने जाते हैं. वह सैन्य परिवार से ताल्लूक रखते हैं. ऐसे में बचपन से ही सेना के लिए उनके मन में एक अलग प्यार था. एयर मार्शल अर्जन सिंह के पिता रिसालदार थे, एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा दी थी. उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह 1883 और 1917 के बीच कैवलरी से संबंधित थे. उनके परदादा नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1879 के अफगान अभियान के दौरान शहीद हुए थे.

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 के समय चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे अर्जन सिंह  की कुशल नेतृत्व और दृढ़ता के साथ स्थिति का सामना करते हुए भारत की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई. बी. चव्हाण ने कहा था, ‘एयर मार्शल अर्जन सिंह हीरा हैं, वह अपने काम में दक्ष और दृढ़ होने के साथ सक्षम नेतृत्व के धनी हैं.’
- जयति जैन (नूतन), रानीपुर झांसी उ.प्र.

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