गुज़रे लम्हे

"नज्म"
क्यों तन्हाई में तनहा मैं बैठा रहा
हर शख्स मुझसे ये कहता रहा, 
क्यों गुज़रे लम्हों में बहता रहा 
मेरा वक़्त मुझसे ये कहता रहा, 
मैं बहता रहा कश्ती की तरह 
मैं मिटता रहा हस्ती की तरह, 
गम-ए-जुदाई क्यों सेहत रहा 
हर शख्स मुझसे ये कहता रहा, 
मैं सुनता रहा लहरों की ज़ुबान, 
मैं बुनता रहा सपनो का मकान क्यों ?
इतना दर्द मैं सहता रहा 
हर शख्स मुझसे ये कहता रहा, 
क्यों गुज़रे हुए लम्हों में बहता रहा 
मेरा वक़्त मुझसे ये कहता रहा !

लेखक- आज़ाद सिंह


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