"गुजर गया है साल, लेकिन कैसे मैं भूल जाऊँ"


गुजर गया है साल, लेकिन कैसे मैं भूल जाऊँ,


कुछ बेशकीमती यादों को फिर  कहाँ ले जाऊँ,
कुछ छोड़कर चले गये, कुछ जुड़ गये सफर में,
कुछ लफ्जों ने कहा,कुछ लफ्ज रह गये अधर में,
कुछ रिश्ते भी बने,  कुछ टूट गये अगर में,
कुछ फरिश्ते भी मिले, कुछ छूट गये डगर में,
आँखें नम हुयी, दिल भी रोया, इस सफर में,
खुद को ही समझाता रहा, दूसरे की कदर में,
बहुत कुछ है सीखा, इस वर्ष के समर में,
रूक जा ए-दिसंबर, कुछ दिन दिसंबर में,
अब आप ही बता दो , कैसे मैं भूल जाऊँ,
इन बेशकीमती यादों को,फिर कहाँ ले जाऊँ,
कुछ मुकाम भी मिले, कुछ ख्वाहिशें रह गयी,
कुछ ईनाम भी मिले, कुछ बंदिशें कह गयी ,
जिंदगी के पड़ाव पर, मेरी जिंदगी बदल गयी,
बहुत फिसला हूँ, लेकिन जिंदगी संभल गयी,
कुछ रह गयी इच्छायें, कुछ ख्वाहिशें मर गयीं,
तुझे जैसे ही पाया , मानो जिंदगी ठहर गयी,
बहुत सीखा है तुझसे, और तू चुप रह गयी,
कुछ अनकही बातें भी, तू गुमशुम कह गयी,
गुजर गया है साल, लेकिन कैसे मैं भूल जाऊँ,
कुछ बेशकीमती यादों को, फिर कहाँ ले जाऊँ।

राहुल यादव 'ग्वाल'
शौकीन कवि
पता- हँसारी, झाँसी (उ.प्र.)
मो. 09450771044

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