एक नारी रूप अनेक...

जो नारी हमारे हर सुख दुख मे साथ निभाती है ..
बचपन से अंत तक हम पे जान लुटाती है ..
कभी माँ के रूप मे हमे लोरियां सुनाती है ..
कभी खुद भूखा रह के हमे अपने हिस्से का निवाला खिलाती है ..
बहन के रूप मे नोक झोक कर के हम पे खूब प्यार लुटाती है ..
एक अच्छी दोस्त बन के हम पे अपनापन जताती है ..
एक पत्नि के रूप में ज़ीवन भर साथ निभाती है ..
दादी नानी बन के हमे कहानिया सुनाती है ..
जो सिर्फ हमारे लिये पूरी ज़िंदगी गवाती है ..
आज क्यूँ वो खुद को पीछे खड़ा पाती है ..
हमे खुद उसको वो सम्मान देना होगा ..
अपनी सोच बदल के उसे उसका अधिकार देना होगा ....
क्यूकि ..वो है तो हम हैं ..वो नहीं तो कुछ भी नहीं ..

लेखक- आशीष बादल





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