चंचल मन

मन कही रुकता नही
उनके बिन अब कुछ भाता नही
जब भी आते है मिलने
मन झूम जाता है
कैसे कैसे बहाने कर के मिलती हूँ
कोई समझ ना पाये मेरी चाहत को
इसलिये हर रोज मुस्कुराती हूँ
कभी कोई ग़म ना दूँ उनको
बस यही तरकीब सोचती हूँ
कैसे खुशी दूँ उनको
मुझे हारना पसंद है
बस उनकी जीत मे अगर मेरी हार हो !
मेरा पागल मन बस उनको ही खोजता रहता है
बस नज़र नही आते कभी
बस मन भर के देखना चाहती हूँ,
मगर दुनिया के डर से छुप छुप के
देखती हूँ उनको
जानते है वो भी शायद
कि ये चंचल मन को उनकी ही तलाश है
फिर क्युं सताते है,मुझे वो हर रोज !!"

                "उपासना पांडेय"



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