घुटन, दर्द और अकेलापन - कहानी

लेखिका- जयति जैन, रानीपुर झांसी
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बात करीब साढे चार साल पहले की है, सोनू अकेला पर खुश था, और नीतू शादीशुदा...
जब नीतू सोनू की जिंदगी में आयी तब वो किसी और की हो चुकी थी, सोनू नीतू से उमर में 6 साल छोटा था ! दोनों बस दोस्त बने, दर्द को बांटने वाले दोस्त... एक दूसरे की केयर करने वाले ! पर पता ही नहीं चला कब प्यार करने लगे ! मन से दोनों एक हो गये कभी गलत नहीं सोचा एक दूसरे के बारे में... मन मिले और कब तन मिल गये पता ही नहीं चला ! जबकि दोनों साल भर में एक बार ही मिलते थे, लेकिन फोन पर बात अक्सर हो जाती थी मतलब रोज़ दिन मे 2 बार ...
नीतू भी अपनी शादी से खुश नहीं थी क्युकिं उसके कृष्ण कन्हेया की कई गोपिया थी... ना उसे कभी वो प्यार मिला ना अपनापन ! जब वो मां बनी तो उसके पति और उसके बीच कुछ सही हुआ और अब काफ़ी अच्छा था दोनों के बीच ! पर प्यार की कमी बनी रही... जब दोनों मिले तब नीतू की 2 साल की बेटी थी ! नीतू मानती थी कि उसकी जिन्द्गी की सारी खुशियां सोनू के साथ और प्यार के सहारे ही मिली हैं ! पर हाल ये थे कि दोनों ही ना इक दूसरे को अपना पा रहे थे ना छोड़ पा रहे थे ! और सोनू जिसके लिये प्यार कभी सिर्फ बकवास और फ़ालतू की चीज रहा पर उससे दोस्ती करने के बाद प्यार को महसूस किया !
लेकिन, सोनू ने एक ऐसे इंसान से प्यार किया, एक ऐसे इंसान को सबकुछ समझा, जो सोनू का कभी था ही नहीं, जिस्पे हक ही नहीं था कभी "
बल्कि सोनू उसकी जिन्द्गी में दूसरा बनके आया कि उसकी जिन्द्गी 2 जगह बंट गयी -
प्यार और जिम्मेदारी !
आज नीतू अपने पति की थी भी और नहीं भी लेकिन सोनू की नहीं थी ! सोनू बोले मेरे साथ रूक जाओ कुछ समय, तो सोचना पड़ता था क्युकिं रिश्ता छुपा हुआ था ! डर था किसी के सामने ना सच खुल जाये कि दोनों एक दूसरे को चाहते हैं ! किसी को बता नहीं सकते थे ! लेकिन सोनू की तो हर तरफ़ से हार थी, ना वो नीतू अपनी कह सकता था , ना उसका बन के रह सकता था ! ना उससे कुछ कहने का अधिकार था, ना उसपे कोई अधिकार था ! फ़िर नीतू के पास समय बहुत कम रहता था सोनू के लिये, अपने पति के साथ वक्त गुजारने के कारण एक दिन नीतू के पास बिल्कुल समय नहीं था सोनू के लिये... तब सोनू ने सोचा कि रोज़ ऐसा ही होता है नीतू के पास उसे छोड़ कर सबके लिये समय है, सच जानते हुए भी
" क्युं मेनें उसे अधिकार देकर रखे हैं, खुद पे... दिल पे... दिमाग पे ???
अगर कभी वो मुझे मिलती भी है अकेली तब ही वो मेरी बनकर रहती है ! बाकी तो मुझे उम्मीद भी नहीं है उससे, लेकिन खुद पे यकीन नहीं आता कि मेने क्या किया खुद के साथ, उस इंसान को अपना सब कुछ माना जिसके लिये में कभी सबकुछ नहीं हो सका था, जानता था और आज भी मानता हुं कि गलत इंसान से प्यार किया है जो मेरा कभी नहीं था ! उसने भी प्यार किया लेकिन आखिरी में,
मैं किसी का पहला प्यार बनना चाहता था, लेकिन मेरा ही पहला प्यार मेरा नहीं हुआ ! मेनें प्यार किया था बिना शर्त और निश्वार्थ के, लेकिन हालातों और जरूरतों ने मुझे स्वार्थी बना दिया है ! और अब मुझे .....
मैं कभी ऐसा नहीं था जेसा में आज हुं, मैं ऐसे इंसान के साथ शारीरिक रूप से एक हुआ/जुडा... जिसके शरीर पर किसी और का हक था/है लेकिन मेरे शरीर और दिल पर जिसने हक जमाया और मेने ज़माने भी दिया, दुख मुझे इस बात का नहीं है ! दुख इस बात का है कि सच सामने होते हुए भी मेने उस सच को क्युं नहीं समझा ! लेकिन अब क्या करुं, केसे मान्गू अपने प्यार का हक ? उसका साथ... अलग हो जाऊ तो कुछ दिन परेशानी फ़िर आदत बन जायेगी लेकिन वही परेशानी झेल्ने की हिम्मत कहा से लाऊ !
नहीं जानता उसने मेरी जिन्द्गी तबाह की या मेने उसकी... लेकिन वो कहती है कि जबसे तुम मेरी जिन्द्गी में आये हो मेने जीना सिखा है, मुस्कुराना सीखा है ! तुम्हारे साथ रहना मुझे बहुत भाता है, तुम्हारे गले लगना, गोदी में सिर रखकर सोना सब बहुत प्यारा है ! और में चाहता हुं कि जब हम तन मन से जुड़ ही गये हैं तो एक हो जाये ! क्युकी इस तरह तीन लोगों की जिन्द्गी बर्बाद हो रही है ! "
लंबा-चौडा सोचने बाद जब फोन की घंटी बज़ी तो विचारो की श्रंखला टूटी और तुरंत ही फोन उठाया..." सौरी जान, बहुत कोशिश की लेकिन ये यहीं थे तो फोन ना कर सकी !" जेसे ही इतने शब्द सोनू के कानों में पडे तो गुस्से को दिल में दबाकर बोला - मैं भी बिजी था, अभी फ्री हुआ हुं , कोई बात नहीं ! वक्त गुजरा और अक्सर समय को लेकर दोनों के बीच झगडे बड़ने लगे, नीतू को अपने पति को समय देना पड़ता था और सोनू को भी ! सोनू को नीतू चाहिये थी और नीतू को पति-बच्चे, परिवार और सोनू सब कुछ ! और
एक दिन 5 साल पुरानी दोस्ती जो अब बेबुनियाद और बेनाम रिश्ते को समेटे थी वो टूट गयी ! और रिश्ते के साथ साथ दो संगदिल इन्सानों को तोड़ गयी ! जीने और मुस्कुराने की सारी वज्ह अब दोनों के लिये खतम हो गयी थी ! सोनू से कहीं जायदा कुछ नीतू की जिन्द्गी से गया था, खत्म हुआ था लेकिन मिला भी नीतू को ही बहुत कुछ सिवाय एक ऐसे इंसान के जो सिर्फ उसी का हुआ करता था ! 
दुख मनाऊ तो कितनी बातों का और किस बात का - अक्सर सोनू यही सोचता था !
अलग होने के पूरे 5 महीने के बाद ! 
अलग हुए या साथ थे, ये दोनों बाते किसी तीसरे को पता ना थी, इसीलिये जो भी हुआ दोनों के बीच हुआ था ! इन 5 महीनों में नीतू ने अपना सबकुछ दांव लगा दिया सोनू को मनाने में, उसने लगातार दिन में 2-3 बार फोन किये कि सोनू इस बार उसे माफ़ करदे, अगली बार से वो जायदा से जायदा समय उसे देगी ! काफ़ी दिनों तक सोनू ने फोन नहीं उठाया, क्युकिं वो जानता था जितनी तकलीफ़ उसे हो रही है उससे कहीं जायदा नीतू को है, और अगर उसने फोन उठाया तो वो अपने आप को रोक नहीं पायेगा नीतू के पास लौटने से !
समय गुजरता जा रहा था और दोनों जिन्दादिल इंसान सूखे पत्तों की तरह मुरझा रहे थे, दोनों एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते ये वो दोनों ही जानते थे पर नीतू के परिवार की सोचकर दोनों एक दूसरे को अपना नहीं पा रहे थे !
जेसे तेसे दिन गुजर जाता लेकिन रात दोनों रोते निकलती, हालाकि जब साथ थे तब भी कभी रात 11 बजे के बाद बात नहीं करते थे लेकिन अब तन्हाई, घुटन, दर्द और अकेलापन सोने नहीं देता था !
लेकिन नीतू ने हार नहीं मानी थी वो रोज़ की तरह सोनू को फोन करती थी कि एक दिन वो उस पर दया खाकर उसकी बात को समझेगा, और एक रात करीब 1 महीने बाद... नीतू ने रात को 1:30 पर सोनू को फोन लगाया, सोनू उस समय नीतू के खयालों में ही बेसुध पडा था अब तो उसने सिगरेट और कभी कभी शराब पीनी शुरू कर दी थी !
अचानक से आधी रात को नीतू का फोन आया देखा तो थोडी खुद की सुध ली, और सोचने लगा कि इतनी रात को फोन पक्का नीतू सो नहीं पा रही होगी पता नहीं केसी होगी, मुरझा गयी होगी मेरे बिना, परेशानी में तो नहीं है किसी?
जब लगातार फोन आता रहा तो घबराकर सोनू ने फोन उठाया...
- हेलो... हा कौन
= मेरा नंबर भी डीलीट कर दिया, वाह
- कौन हो आप? मे पहचाना नहीं.
= अब तुम मुझे पहचानोगे भी केसे, मैं लगती कौन हुं तुम्हारी ?
- देखिये आपने गलत जगह फोन किया है...
= सौरी गलती से लग गया, में तो अपने किसी दोस्त को फोन लगा रही थी !
और
फोन कट गया! लगा जेसे बहुत कुछ टूट गया हो अंदर... नीतू रोती रही, वो दर्द जो अब असहनीय हो गया था! और वहा सोनू भी कहा खुश था वो भी तो रोया था ! करीब आधे घंटे बाद खुद सोनू ने फोन किया...
- हेलो नीतू... केसि हो? ठीक तो हो ना, इतनी रातगये फोन क्युं किया, क्या हुआ?
= बस ऐसे ही, कोई खास वज्ह नहीं थी... तुमसे बात करने का मन किया तो बस... खुद को सम्भाल्ते हुए नीतू बोली !
- अच्छा, वेसे खुश तो बहुत होगी तुम, तुम्हारे रास्ते का कांटा निकल ग्या, अब चैन से अपने पति के साथ ऐश करो ! ना बार बार किसी को फोन करना, ना किसी की बाते सुन्ना कि फोन क्युं नहीं करती, समय नहीं है वगेरह वगेरह... क्युं हो ना खुश अब ?
सोनू ने ये सवाल नहीं किया था बल्कि खींच कर जोरदार तमाचा मारा था नीतू की भावनाओ को ! नीतू थोडा चुप रही फ़िर बोली -
सही कह रहे हो तुम, तुमने जो फ़ैसला लिया वो बहुत अच्छा है ! तुम इतना मुझे समझते हो उसके लिये थैंक यू !
= तुम बताओ केसे हो, क्या चल रहा है जिन्द्गी में ? मेरी तरह तुम भी खुश होगे, कि चलो सिर दर्द तो दूर गया, अब ना बार बार फोन करना ना ही किसी को सम्भाल्ना !
- खुश... हा बहुत हुं ! तुमने इतना डसा मुझे कि दूर जाकर खुश होना तो बनता ही है ! तुम भी तो खुश हो तो मैं पागल थोडे हुं जो बैठा रोऊगा !
= मैने कब कहा तुम पागल हो तुम नहीं हो पागल, ना ही बेवकूफ़, तुम बहुत ही अच्छे हो ! तभी शायद में तुम्हे भूल नहीं पाउगी कभी !
- वेसे तुम्हारे पति को पता है कि आधी रात को तुम किसे डस रही हो मतलब किससे बात कर रही हो ?
= नहीं ! वो सो रहे हैं, बोल रहे थे कि सोनू का फोन नहीं आया क्या हुआ, तुम दोनों दोस्तो की बात नहीं हो रही क्या ?
- क्या बात है, उसको पता है कि काफ़ी दिनों से बात नहीं की मैने वाह ! तुम क्या बोली?
= बोल दिया उसके पास समय नहीं है ! बहुत बिज़ी है वो !
- और वो पागल मान गया ! सोनू हसते हुए बोला!
= तुम कभी किसी को भी सही नहीं समझ सकते क्या ! वो जानते हैं तुम मेरे अच्छे दोस्त हो आज तक मैने कभी उनको नहीं टोका जिससे बात करना है करे तो वो मुझे क्युं रोकेगे में चाहे जिससे बात करुं ! नीतू ने आक्रामक होकर कहा ! लोगों को जज करना बंद करो सोनू !
- हस्ते हुए सोनू बोला, मेरा मन मैं जो चाहू जेसे चाहू समझू, तुम्हे क्या ?
= कभी खुश नहीं रह पाओगे ऐसे, कम से कम समझने की कोशिश तो करो कभी ! हर बार मुझे अपने प्यार का सबूत देना पड़ता है ! कितने बार बोलू कि ही पहले और अखिरी इंसान हो जिससे मैने प्यार किया है ! एक वो है जिन्हे जरुरत हुई तो जरुरत पूरी की और कोई मतलब नहीं हां जिम्मेदारी सारी निभाते हैं पति की और एक तुम हो जो किसी बात को समझना ही नहीं चाहते, ये जानते हुए कि तुम्हारे बिना मेरा हाल बुरा हो जाता है, इसके बाद भी 1 महीने निकाल दीये तुमने क्युं ?
तुम तो मुझसे बहुत प्यार करते थे ना, ऐसा प्यार था तुम्हारा तुमने ये नहीं सोचा कि केसे मैं अकेले रहूगी, कौन होगा मुझे समझने वाला, किसको अपना दर्द सुनाऊगी कौन समझेगा ! तुम भी औरो की तरह निकले एक के पास समय नहीं, काम से फ़ुर्सत हुए तो फोन ओर टी.वी. और सो जाओ और एक तुम जिसकी जिन्द्गी हुआ करती थी मैं, कभी समझने की जरा भी कोशिश की तुमने कभी कि वो केसी मुसीबत में है जो फोन नहीं कर पा रही ! जानते हो पिछले 1 महीने से में B.P. की गोलिया खा रही हुं, खुश हुं ना बहुत इसीलिये !
मैने तो कई बार बोला, सब छोड़ कर आउगी तो अपनाओगे मुझे, तो तुममे हिम्मत नहीं है ! अभी मेरे परिवार का खयाल है, कल को अपने परिवार का होगा या नहीं ! और हां एक वादा करती हुं तुमसे तुम शादी करके अच्छे से सेट हो जाओ, तुम्हारी जिन्द्गी से मैं हमेशा के लिये दूर हो जाऊगी ! कभी फोन नहीं करूगी कम से कम तसल्ली तो रहेगी तुम्हारा ध्यान रखने वाला है कोई ! आज़ाद कर दुगी मैं तुम्हे हमेशा के लिये !
अरे मेरी ना सही अपनी ही भावनाओं का खयाल रखो, तुम खुश हो इन सबसे और झूठ बोलना मत ! मैं तुम्हे तुमसे जायदा जानती हुं, नहीं हो तुम खुश ये नाटक बंद करो ! खुद को तकलीफ़ देना बंद करो, तुम्हे जो कहना है सुनाना है सुना लो, अंदर ही अंदर मत घुटो ! मेरी देख रेख के लिये बहुत है लेकिन तुम अकेले हो ! केसे करोगे सब अकेले सामान्य ? देखो बहुत हुआ अब मैं माफ़ी मांग रही हुं ना ! सौरी
हाथ जोड़के, पैर पकड़कर माफ़ी मांग रही हुं, तुम्हे अब भी मेरे साथ नहीं रहना है मत रहो लेकिन खुद को सम्भालो, खुद तो खुश रहो !
अब बोलोगे कुछ...
सोनू निशब्द था !!!





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